Ganesh ji ki katha: भगवान श्री गणेश एक अलौकिक स्वरूप में सृस्टि में विद्वान हैं। हिंदू गर्न्थो और पौराणिक कथाओं के अनुसार, विनायक जी भगवान शिव व देवी पार्वती के पुत्र है। भगवान श्री गणेश का जन्मदिन का अवसर करीब आ रहा है। इसे पुरे देश में श्री गणेशोत्सव के नाम से और इस त्यौहार को धूमधाम से मनाया जाता है। विनायक जी के जन्मदिन को लेकर कई प्रकार की कथाएं हैं। शिवपुराण और वराहपुराण में गणेश जी के जन्म को लेकर अलग-अलग ग्रंथ हैं।
शिवपुराण के अनुसार गणेश जी
इस कथा में देवी पार्वती ने अपने शरीर पर हल्दी का लेप लगाई थी, इसके बाद माता ने अपने शरीर से हल्दी का उबटन उतारी समय माता पर्वती ने एक पुतला बना दिया। पुतले में बाद में उन्होंने प्राण डाल दिए। इस तरह से गणेश जी विघ्नहर्ता पैदा हुए थे। इसके बाद देवी पार्वती ने विनायक जी को आदेश दिए कि तुम इस स्नान द्वार पर बैठ जाओ और मेरी रक्षा करो, और कोई को भी अंदर नहीं आ सके । कुछही देर बाद भोलेनाथ घर आए उन्होंने कहा कि मुझे पर्वती से मिलना है। इस कथन पर गणेश जी ने साफ मना कर दिया। और शिवजी को इस के बारे में पता नहीं था कि ये बालक कौन हैं।
दोनों में कुछ समय बाद विवाद हो गया और उस विवाद ने युद्ध का विकराल रूप धारण कर लिया। उसी दौरान शिवजी को क्रोध में अपना त्रिशूल निकाला और गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया। इस घटना का पार्वती को पता चला तो वह बाहर आ गई और रोने का विलाब करने लगीं। रोते हुए ही शिवजी से कहा कि आपने अपने पुत्र का सिर काट दिया। फिर शिवजी ने कहा कि ये तुम्हारा पुत्र कैसे हो सकता है। इसके बाद माता पार्वती ने शिवशंकर को पूरी कहानी बताई। भोलेनाथ ने पार्वती को मनाते व सांत्वना देते हुए कहा कि ठीक है मैं फिर से इसमें प्राण डाल देता हूं, लेकिन शिवजी ने कहा। कि प्राण डालने के लिए एक सिर होगी।
गणेश जी की छोटी सी कहानी
इस पर उन्होंने गरूड़ महाराज को बुलाया और कहा कि उत्तर दिशा की तरफ जाओ और वहां जो भी मां अपने बच्चे की तरफ पीठ कर के बैठी एवं सोई हो उस बच्चे का सिर काट ले आना। गरूड़ महाराज पुरे जंगल भटकते रहे फिर भी उन्हें ऐसी कोई मां नहीं देखी क्योंकि हर मां अपने बच्चे की तरफ मुंह कर के बैठी हुई थी। बहुत देर बाद : एक हथिनी दिखाई दी। हथिनी का शरीर का आकर बहुत ज्यादा होता हैं जिस कि वजह से बच्चे की तरफ मुंह कर के नहीं सो सकती है। गरूड़ महाराज ने हथिनी के शिशु हाथी का सिर काट ले आए। भगवान शिवशंकर ने हथिनी के शिशु का सिर बालक के शरीर से जोड़ दिया। उसमें प्राण डाल दिया गया। उस बालक का नामकरण कर दिया। इस वजह से विगनहर्ता श्री गणेश को हाथी का सिर लगा।
गणेश जी पूर्ण जानकारी

इसका पूण विवरण श्री गणेश चालीसा में वर्णित है क्यों कि देवी पार्वती ने पुत्र प्राप्ति के लिए कठोर तप किया था । इस कठोर तप से प्रसन्न होकर स्वयं श्री विगनहर्ता गणेश जी ब्राह्मण जी का रूप धर कर प्रकट हुई और माता पर्वती को वरदान दिया कि मांते आपको बिना गर्भ धारण किए ही आपको बुद्धिमान और दिव्य तेजस्वी बालक व पुत्र की प्राप्ति होगी। ऐसा वरदान देकर वे अदृश्य हो गए और कुछ ही समय में पालने में बालक के रूप आकर विद्वान् हो गए। ब्रह्माण्ड के तीनो लोक में हर्ष छा गया। भगवान शिवशंकर और माता पार्वती ने विशाल उत्सव का आयोजन किया ।
Ganesh ji ki katha
तीनों लोकों से देवताओ , गंधर्व, सुर और ऋषि, मुनि इस उत्स्व में शामिल हुई व सभी ने आशीर्वाद दिया। और शनि महाराज भी शामिल हुए। देवी पार्वती ने उनसे बालक को देखने और आशर्वाद देने का आग्रह किया। शनि महाराज ने अपनी कुरुद दृष्टि की वजह से बालक को देखने से बच रहे थे। इसका देवी पार्वती को बुरा लगा। और शनिदेव उलाहना दिया कि आपको यह बालक एवं उत्सव पसंद नहीं आया क्या ,महाराज शनिदेव भय के साथ बालक को देखने पहुंचे, लेकिन जिस का भय था वो ही हुआ जैसे ही शनि किंचित दृस्टि बालक पर पड़ी, बच्चे का सिर आकाश में उड़ गया। त्यौहार का माहौल मातम में परिवर्तित होते दिखाई देने लगा। देवी पार्वती डर गई।
तीनों लोकों मे हाहाकार मच गया। तुंरत गरूड़ महाराज जी को चारों दिशा से उत्तम सिर ढूंढ के लाने को कहा गया। गरूड़ महाराज हाथी के बच्चे का सिर काट के ले आए। यह सिर शिवशंकर ने बालक गणेश के शरीर (धड़ ) से जोड़कर प्राण डाले। इसी वजह से विगनहर्ता गणेश जी का सिर हाथी का हुआ था।
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वराहपुराण के अनुसार गणेश जी की जन्म कथा | ganesh ji ki janam katha in hindi
वहीं वराहपुराण के अनुसार भगवान शिव शंकर ने विनायक जी (ganesh ji ki janam katha in hindi ) को पचंतत्वों सेनिर्मित किया था जब भगवान शंकर गणेश जी को अवतरित कर रहे थे तब गणेशजी ने अत्यंत सुंदर व आकर्षित रुपवान रूप पाया। इसकी खबर देवताओ को मिल गई। और जब देवताओं को श्री गणेश के रूप के बारे में पता चला लगा तो देवताओ डर सताने लगा कि कहीं ये गणेश सबके लिए आकर्षण का केंद्र ना बन जाए। और इसी डर से भगवान शिव शंकर भी बयभीत हो गए थे, उसके बाद भोलेनथा ने उनके पेट आकर बड़ा दिया गया और उनका मुंह हाथी का बना दिया गया था ।